कतरा-कतरा मय का आलम है रवाँ मैखानोंमें
रफ़्ता-रफ़्ता चढता नशा है यहाँ पैमानोंमें
ख़्वाबो-जन्नत से नज़ारे रुबरु मैखानोंमें
ढुंडते थे आजतक जो, मिल गया पैमानोंमें
यार कुछ बिछडे पुराने मिल गये मैखानोंमें
मह़फ़िलें रंगीन है अब है खनक पैमानोंमें
तोडकर हम जा रहे है जिस्मो-जाँ की बंदिशें
कौन कहता है के मयकश कैद है पैमानोंमें


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