रुबाई:
जब भी कोई वाकिया, किसी गम में बदल जाये
बन जाओ खुदही शाहिद के दिल भी बहल जाये
गज़ल:
हसरतें दिवार बनके रोकती है रास्ते
फ़िर भी चलते है चलेंगे हसरतोंके रास्ते
देखते ही देखते हम ये कहाँपे आ गये
आ के साग़र तक रुके है ज़िंदगीके रास्ते
या ख़ुदा हमसे ना पुँछो क्या हमारी आरज़ु
क्या ये गम काफ़ी नही है अब हमारे वास्ते
दम-ब-दम होने लगा है आज ये कैसा गुमाँ
हम जहाँ थे है वही और चल रहे है रास्ते
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