रुबाई:
क्या वही होता है सच जो नजरे-नुमाँ होता है
याके होता है सच जो सचका गुमाँ होता है
गज़ल:
करता है करके मुकरता है कोई
अपना अपना अंदाज़े-इश्क होता है
हाले-दिल-ए-आशिक नज्म क्यों ना कहें
वो तो ऎसीये-ऎसीये बयाँ होता है
आपकी नाराज़ी हमपर जफ़ा होगी
क्या कोई अपनोंसे ख़फ़ा होता है?
हो न हो कोई तो ऎसा साग़र होगा
होश से पहले जो नज़ा को लाता है
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