सिर्फ़ ज़िंदा हुँ, ख़ाक जीता हुँ
सोचता कुछभी नही सिर्फ़ पीता हुँ
चाहता हुँ निहाल हो जाऊँ
जब परेशानसा मैं होता हुँ
कल हुई कम तो लडखडाया मैं
आज खुदको सम्भाल लेता हुँ
तेरी उल्फ़तकी राह में साक़ी
खुदको खोया हुवा सा पाता हुँ
तू नही, तेरी याद आयेगी
ईसी उम्मीद पे तो जीता हुँ
अब तो आदतसी हो गयी है यूँ
रोते-रोते मैं हंस भी लेता हुँ
मेरा कोई नही है तेरे सिवाय
मैं तेरे कल का एक नाता हुँ
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