इश्क की आग में हमको जलाने चले थे आप
चलते चलते इश्क में खुद भी जले थे आप
आरज़ु-ए-ख़ुदाई हमसे करने चले थे आप
इन्सानियत हमारी भुलाने चले थे आप
क्या मजबुरीयाँ थी ऎसी हमको बताभी देते
इतना तो पता चलता, बेवफ़ा नही थे आप
रश्क ये नही है के साथ नही है आप
गम है हमें के कितने तनहा हुवे है आप
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