Wednesday, February 28, 2007

ख़ाक

पीने दिजीये, ना रोकीये, ये प्यास अबभी बाकी है
अब तो लगता है युँ के ये मयही मेरी साक़ी है

पा लिये है गमे-फ़ुर्कत, इश्क अबभी बाकी है
दुनिया ने कहा पागल मुझे तेरा कहना बाकी है

कल को है रोज़े-कयामत रात अबभी बाकी है
कहता रहा जो उम्रभर वो बात अबभी बाकी है

जानसे गये है, शायद रुह अबभी बाकी है
जिस्म जल गया है मगर ख़ाक अबभी बाकी है

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