Monday, March 5, 2007

इश्क

इश्क की आग में हमको जलाने चले थे आप
चलते चलते इश्क में खुद भी जले थे आप

हमको ना चाहीये तेरे रहमो-करम की भीख
जी लेंगे जैसे भी मगर जियेंगे अपने आप

युं ज़िंदगी गुजार के कुछ तजरुबा तो हो
बचते बचाते ज़िंदगी क्युं जी रहे है आप

नाकाम हसरतोंका धुवाँ दिलमें उठे कभी
तब हमको याद कर के क्या करेंगे आप

हंसकर किसीका दिल जो तोडो तो है अदा
आसाँ खुद अपनी ज़िंदगी बनाते चले है आप

No comments: