Tuesday, March 6, 2007

राज़

या ख़ुदा मुझको बता, ये ज़िंदगी क्या राज़ है
वो भी हमसे, हम उसीसे आजतक नाराज़ है

कर तलब युं जाम-ए-उल्फ़त कौन पीता है यहाँ
अश्क पी-पी कर बहकना, ये मेरा अंदाज़ है
[तलब=माँगना;]

देखिये वो आ रही है, रहगुजर पर्दानशीं
कौन है, क्या नाम उनका आजतक ये राज़ है

नग्मा-ए-दिल गा रहे थे महफ़िले-काफ़िर में हम
कौन रोया वो वहाँपर कैसी ये आवाज है ?

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