Monday, March 5, 2007

तारीकी

कैदे-ख़याल-ए-यार भी इतनी बुरी नही
दिल भी बहल ना जाये इतनी बुरी नही

कुछ इस कदर घनी है तारीकी-ए-हयात
आनी है सहर अब भी अभी शब ढली नही

साग़र तो मेरे लबसे कुछ दूर है अभी
साक़ी जो तू न हो तो ये महफ़िल सजी नही

मिलते रहेंगे और भी दुनिया में हमसफ़र
तेरे बगैर रंज-ओ-गम की कमी नही

जा तुझको हो मुबरक किसी घर की रौशनी
कबसे हमारी कब्रपर शमां भी जली नही

दिले-दश्त-ए-बेचिराग में तूफ़ान सा उठा
इक शै हिली नही के हवा भी चली नही

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